Saturday, June 7, 2014

धोखे से हो जाता है क्या क्या यहाँ ...

विकास के नाम पर चारों ओर वृक्षों की बेतहाशा कटाई, और प्राकृतिक संसाधनों के अँधे दोहन का ही परिणाम है की नवतपा की भीषण गर्मी चहुँओर रिकॉर्ड तोड़ रही है. ऐसी तपिश मेरे ख्याल से मानव मस्तिस्क पर काफी बुरा प्रभाव डालती होगी, क्यों की मुझे और कोई कारण नज़र नहीं आता की मध्यप्रदेश के गृहमंत्री कहते हैं की “कुछ रेप सही होते हैं और कुछ गलत” और इसके तुरंत बाद छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री रामसेवक पैकरा ने कहा कि “रेप तो धोखे से हो जाता है, कोई जानबूझ कर नहीं करता”. 

राज्य की आम जनता ने इन्हें वोट करते समय ये सोचा होगा की ये हमारे लिए काम करेंगे, और ऊपर से राज्य के गृह मंत्री तो हमारी सुरक्षा के लिए काम करेंगे, कानून व्यवस्था ठीक रखेंगे. बड़ी विडम्बना है की अगर किसी के मानस में ऐसे विचार होंगे तो वो क्या ख़ाक आम जनता की सुरक्षा के बारे में सोचेगा? ये बयान गलती से निकले हुए ऐसे बयान नहीं जैसा हमारे मुख्यमंत्री रमन सिंह जी के मुख से निकल गया और उन्होंने मुंडे जी की जगह मोदी जी को श्रद्धांजलि दे डाली.अब ये गलती से हो जाता है, जुबान फिसल जाती है कभी.लेकिन अगर कोई सही बलात्कार और गलत बलात्कार समझाने लगे और कोई इसे धोखे से हो जाने वाला कृत्य बताकर पूरी नारी जाती का उपहास उड़ाए तो ये जुबान की फिसलन नहीं ये उनके अंदर पुरुषप्रधान समाज में व्याप्त गन्दगी को दर्शाता है. 

बहुत दिन नहीं हुए जब रायपुर के 7 बार के सांसद श्री रमेश बैस ने एक 3 साल की बच्ची के साथ हुए बलात्कार पर कहा था की वयस्कों के साथ बलात्कार तो समझ आता है, लेकिन बच्चियों के साथ ये जघन्य अपराध है. अब बात ये है की बलात्कार तो बलात्कार है, और हर स्थिति में जघन्य है. आये दिन ऐसी ख़बरें आती हैं की किसी गाँव में किसी लड़की या उसके परिवार को सजा देने के लिए उसके साथ बलात्कार होता है, उसे गाँव में नग्न कर घुमाया जाता है, अर्थात पुरुष प्रधान समाज में कहीं ये कुरीति भी घर कर गयी है की स्त्री को सजा देने का ये भी एक माध्यम है. और हमारे नेताओं के ऐसे विचार इसी तरह की मानसिकता को स्वीकार किये हुए लोगों के विचार लगते हैं.  
ये हैं हमारे जन प्रतिनिधि.

सेना में जब की अफसर की नियुक्ति परीक्षा होती है तो उसका मनोवैज्ञानिक परिक्षण भी होता है क्यों की नियुक्ति के बाद उसके हाथों में बहुत सी शक्तियां दी जाती हैं , जिसका कोई दुरूपयोग ना हो सके.ऐसे ही हमें अपने जनप्रतिनिधियों का मनोवैज्ञानिक परिक्षण करवाना चाहिए, ताकि विकृत मानसिकता लिए कोई भी व्यक्ति देश को आगे ले जाने की बागडोर पकड़ कर ना बैठे, वरना ये हमें कहीं का नहीं छोड़ेंगे.और बर्बादी के आलम में फिर से कह देंगे की “धोखे से हो गया”.


आपका -  संदीप तिवारी 

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